नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम Kundaliya Chhand Ki Paribhasha, कुंडलियां छंद क्या है, कुण्डलिया छंद की परिभाषा एवं उदाहरण, कुंडलियां छंद किसे कहते हैं आदि के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे तो आइये बिना देरी के इस लेख कि शुरुवात करते हैं और जानते हैं kundaliya chhand ki paribhasha udaharan sahit
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Kundaliya Chhand Ki Paribhasha | कुण्डलिया छंद की परिभाषा एवं उदाहरण
कुंडलियाँ छंद एक विषम मात्रिक छन्द होता है इस छन्द का निर्माण रोला छन्द तथा दोहा छन्द के योग से किया जाता है। सबसे पहले इसमे दोहा छन्द के दो चरण होते है उसके बाद इसमे रोला छन्द का प्रयोग किया जाता है जिससे कुंडलियाँ छंद का निर्माण होता है। कुंडलियां छंद दोहा और रोला दो छंदों के मेल से बनता है
कुंडलियाँ छंद में 6 पद 12 चरण होते हैं और सभी 6 पदों में 24-24 मात्राएं होती हैं किन्तु पहले दो पदों में 13, 11 यति से चौबीस मात्राएं होती हैं जबकि शेष चारों पदों में 13, 11 यति पर चौबीस मात्राएं होती हैं यही कुंडलियां छंद कहते है.
कुंडिलयां छंद में पहले भाग मे दोहा छंद होता है और फिर रोला छंद होता है । दोहा में 13,11 के यति से 24 मात्राएं होती हैं जबकि रोला में 11,13 यति पर 24 मात्राएं होती हैं यदि कुण्डलियां छंद कहलाता है
Kundaliya Chhand ki Paribhasha Udaharan Sahit
ऽ ऽ ऽ ऽ I I I ऽ ऽ I I ऽ ऽ ऽ I = 24 मात्राएं
कोई संगी उत नहीं है इत ही को संग।
। ऽ ऽ । ।। ऽ । ऽ । । ऽ । । । । ऽ । = 24 मात्राएं
पथी लेहु मिलि ताहि ते सबसों सहित उमंग।।
।। ऽ ।।। । ऽ । ऽ । ।। ऽ ऽ ऽ ऽ = 24 मात्राएं
सबसों सहित उमंग बैठि तरनी के माहीं।
कुण्डलिया कि उदाहरण सहित व्याख्या
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेय
S S S | | S | S, SS S | | S | = 13+11 = 24 मात्राएँ
जो बनि आवे सहज में, ताही में चित देय
S | | S S | | | S, S S S | | S | = 13+11 = 24 मात्राएँ
ताही में चित देय, बात जो ही बनि आवे
S S S | | S |, S | S S | | S S = 11+ 13 = 24 मात्राएँ
दुरजन हँसे न कोय, चित्त में खेद न पावे
| | | | | S | S |, S | S S | | S S = 11+ 13 = 24 मात्राएँ
ऊपर प्रस्तुत किये गए उदाहरण में पहले चरण में 13 मात्राएं और फिर 11 मात्राएं हैं इसी प्रकार से दूसरे चरण में भी हैं फिर तीसरी पंक्ति के प्रथम चरण में 11 मात्राएं और दूसरे चरण में 13 मात्राएं हैं अतः यह है कुंडलिया छंद का उदाहरण है
कुंडलिया छंद के 10 उदाहरण – Kundaliya Chhand Ka Udaharan
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम ।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान ॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै ॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी ।
सब दिन रखे साथ, बड़ी मर्यादा कमरी ॥
चलती रहती जिंदगी, ज्यों कागज़ की नाव ।
लोग भटकते लक्ष्य से, करते नहीं चुनाव ।।
करते नहीं चुनाव, हवा खे कर ले जाती ।
कुछ हो जाती पार, कहीं पर भँवर डुबाती ।
कहे ‘साधना’ सत्य, करो मत कोई गलती ।
हाथ रखो पतवार, नाव तब ढंग से चलती ।।
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध, उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा, घर का जोगी।।
रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान ।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान ।।
सीप चुने नादान, अज्ञ मूंगे पर मरता ।
जिसकी जैसी चाह, इकट्ठा वैसा करता ।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर ।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर।।
हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर।
उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।।
सबको करें विभोर, प्रदूषण हर लेते हैं।
कंकड़-पत्थर खाकर, मीठे फल देते हैं।।
कह ‘मयंक’ आचरण, विचार साफ-सुथरे हों।
उपवन के सारे, पादप नित हरे-भरे हों।।
बेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार।
बेटी ही संसार की, होती सिरजनहार।।
होती सिरजनहार, स्रजन को सदा सँवारा।
जिसने ममता को उर में जीवन भर धारा।।
कह ‘मयंक’ दामन में कँटक रही समेटे।
बेटी माता बनकर जनती बेटी-बेटे।।
चढ़ती चींटी सर्वदा, अनथक करे प्रयास ।
ले जाती है शीर्ष तक, बस मंजिल की आस ।।
बस मंजिल की आस, सदा श्रम करती जाती ।
हो जाता श्रम साध्य, और मंजिल को पाती ।
कहे ‘साधना’ सत्य, लगन ही आगे बढ़ती ।
देती श्रम की सीख, तुच्छ चींटी जब चढ़ती ।।
साँई बैर न कीजिये, गुरु, पंडि़त, कवि, यार
बेटा, बनिता, पौरिया, यज्ञकरावनहार
यज्ञकरावनहार, राज मंत्री जो होई
विप्र, पड़ोसी, वैद्य, आपुको तपै रसोई
कह गिरधर कविराय युगन सों यह चलि आई
इन तेरह को तरह दिये बनि आवै साँई ॥
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान ।
चंचल जल दिन चारि कौ, ठाउँ न रहत निदान ।।
ठाउँ न रहत निदान, जियन जग में जस लीजै ।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै ।।
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घर तौलत ।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सब ही के दौलत ।।
नारि सुहागिन कर रही,पूजा जप तप ध्यान।
पति की लम्बी आयु हो, खूब बढ़े जग मान।
खूब बढ़े जग मान, करे उपवास तुम्हारा।
मात चौथ सुन अर्ज , रहे संजोग हमारा।
कर सोलह सिंगार, निभाये प्रीत यहाँ दिन।
पति हित सारे काज, करे ये नारि सुहागिन।
कुंडलियां छंद के नियम
- कुण्डलियां में 6 पद अर्थात 6 पंक्ति होती है ।
- पहले दो पद दोहा के होते हैं ।
- शेष चार पद रोला के होते हैं ।
- दोहा का अंतिम (चौथा) चरण ज्यों का त्यों रोला का प्रथम चरण होता है ।
- कुण्डलियां जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारंभ हुआ है उसी से उसका अंत होता है ।
- कुण्डलियां के पांचवें पद के पहले चरण में कवि का नाम आता है ।
Conclusion
दोस्तों हम आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़कर आप Kundaliya Chhand Ki Paribhasha, कुण्डलिया छंद की परिभाषा एवं उदाहरण, kundaliya chhand ki paribhasha udaharan sahit समझ गए होंगे अगर आपको हमारे द्वारा पेश कि गई जानकारी हेल्पफुल लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरुर करें. धन्यवाद
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