Chhappay Chhand Ki Paribhasha | छप्पय छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम Chhappay Chhand Ki Paribhasha, छप्पय छंद की परिभाषा उदाहरण सहित छप्पय छंद का अर्थ आदि के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करने वाले हैं तो चलिए देर न करते हुए आज के इस पोस्ट कि शुरुवात करते हैं

Chhappay Chhand Ki Paribhasha

Chhappay Chhand Ki Paribhasha | छप्पय छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

छप्पय छंद में 6 पंक्तियां होती हैं जिनमे प्रथम चार पंक्तियों में 24- 24 मात्राएं होती है उसमे भी की 11 – 13 वीं मात्राएं पर यति होती है और अंतिम दोनों पंक्तियों में 28-28 मात्राएं होती हैं और 26- 26 मात्राएं भी होती हैं उनमे भी 15 -13 मात्राएं पर यति होती है उसे ही छप्पय छंद कहते है, छप्पय छंद में षटपद है छप्पय छंद भी एक मिश्रित छंद है जो की रोला और उल्लाला छंद दोनों से मिलकर बना हुआ है

Chhappy Chhand Ka Udaharan – छप्पय छंद के उदाहरण

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
S S | | | | S |, | | | | | | | S | | S = 11+13 = 24 मात्राएं
सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
S | S | | | | | |, S | S S S | | S = 11+13 = 24 मात्राएं
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल तारामंडल है।
| | S S | | S |, S | S S S | | S = 11+13 = 24 मात्राएं
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन रत्नाकर है।
S S | | | | S | S | | | S S | | S = 11+13 = 24 मात्राएं
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
| | S | | S | | S | S, | | S S | | S | S = 15+13 = 28 मात्राएं
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
S S | S | S S | S, | | | S | S S | S = 15+13 = 28 मात्राएं

छप्पय छंद की परिभाषा व्याख्या सहित- ऊपर प्रस्तुत किये गए उदाहरण में 6 पंक्तियां हैं जिनमे प्रथम चार पंक्तियों में 24 मात्राएं हैं उनमें भी 11-13 वीं मात्राओं पर यति है और फिर अंतिम दो पंक्तियों में 28 मात्राएं हैं उनमें भी 15 – 13 मात्राओं पर यति है इसलिए यह छप्पय छंद है और यही छप्पय छंद का उदाहरण है

छप्पय छंद के 10 उदाहरण

जिनके हो तुम फूल , सदा वह साथ तुम्हारे |
कभी न तुमसे दूर , रहे वह सदा हमारे ||
कह सुभाष कवि जैन,हृदय से करो समर्पण |
कभी न जाना भूल , उन्हें तुम करके तर्पण ||
याद उन्हें करते रहो , पर मत जाओं भूल तुम |
जीवन में वह बृक्ष है, जिनके खिलते फूल हम ||

दुर्जन देता घात , भरोसा कभी न करना |
देना सभी जवाब. नहीं तुम उससे डरना ||
कहता ‌ यहाँ सुभाष , मानिए. झूठा सपना |
आए. दुर्जन काम , कभी वह. होवे अपना ||
अपना भी करने लगे, आकर पीछे घात‌ है |
नहीं पाप का काम तब , देना उसको मात है ||

अग्रसेन नृपराज, सूर्यवंशी अवतारी।
विप्र धेनु सुर संत, सभी के थे हितकारी।
द्वापर का जब अंत, धरा पर हुआ अवतरण।
भागमती प्रिय मात, पिता वल्लभ के भूषण।
नागवंश की माधवी, इन्हें स्वयंवर में वरी।
अग्रोहा तब नव बसा, झोली माँ लक्ष्मी भरी।।

मौसी उनको मान , निभाता जिनसे नाता |
खुले आम. लूँ नाम , कहें हम विद्या माता ||
कलम हाथ में देख , शारदे देती सविता |
बने लक्ष्मी पुत्र, लिखे पर यारो कविता ||
कविता‌ से अंजान हूँ , पर भावो का ‌इत्र है |
मोसी मेरी शारदे , रिश्ता यहाँ पवित्र है ||

आना चाहें देव भी , समझें इसको आन सब।।
कुछ हैं ‌बड़े महान , हमें हर चौखट दिखते |
करें न कोई‌ काम , वहाँ पर लटके मिलते ||
मुरझाते हैं फूल , देखता रहता‌‌ माली |
दिखता कदम प्रताप, बगीचा रहता‌ खाली ||
कुछ लोगों के पग दिखें , होते बंटाधार ‌हैं |
कदम रखें जिस भूमि पर , बँटती रहती खार है ||

करके तांडव नृत्य, प्रलय जग में शिव करते।
विपदाएँ भव-ताप, भक्त जन का भी हरते।
देवों के भी देव, सदा रीझें थोड़े में।
करें हृदय नित वास, शैलजा सह जोड़े में।
प्रभु का निवास कैलाश में, औघड़ दानी आप हैं।
भज ले मनुष्य जो आप को, कटते भव के पाप हैं।।

बोलो मीठे बोल , सभी के मन को भाएँ।
बढ़े आपका मान , प्रीति सबसे करवाएँ।
रिश्ते करें अटूट , महक जाएँ घर-आँगन।
पुष्प खिलेंं हर डाल , हँसे जैसे मन मधुबन।
धरा बने जब स्वर्ग-सी , प्रेम भरे हों गान सब।

सर्वभूत हित महामंत्र का, सबल प्रचारक |
सदय ह्रदय से एक-एक जन का उपकारक | |
सत्यभाव से विश्व बंधुता का अनुरागी |
सकल सिद्धि सर्वस्व सर्वगत सच्चा त्यागी ||
इसकी विचारधारा धरा के धर्मो में है वही |
सब सार्वभौम सिद्धांत का आदि प्रवर्तक है वही ||

सच में दिखे कमाल, फर्क‌ हम देखें इतना |
उससे उतना प्यार,काम है जिससे जितना ||
देख रहा संसार , खून के‌ बंधन सस्ते |
स्वारथ के सब पृष्ठ , खुले है पूरे बस्ते ||
रिश्ते देखे‌ खून के, जिस पर उठें सवाल अब |
अंजानो से प्यार है‌, सच में दिखें कमाल अब ||

भारत माँ की शान , हुए थे सभी इकट्ठे |
आजादी की चाह , दाँत गोरो के खट्टे ||
कैसी‌ थी‌ तलवार , सभी‌‌ ने सुनी कहानी |
लड़ी शौर्य से खूब , यहाँ झांसी की रानी ||
रानी लक्ष्मी का सुनो , पहचानो बलिदान को |
नमन करूँ वीरांगना , भारत माँ की‌ शान को ||

छप्पय छंद विधान

छप्पय छंद एक विषम-पद मात्रिक छंद है। यह भी कुण्डलिया छंद की तरह छह पदों का एक मिश्रित छंद है जो दो छंदों के संयोग से बनता है। इसके प्रथम चार पद रोला छंद के हैं, जिसके प्रत्येक पद में 24-24 मात्राएँ होती हैं तथा यति 11-13 पर होती है। आखिर के दो पद उल्लाला छंद के होते हैं।

उल्लाला छंद के दो भेदों के अनुसार इस छंद के भी दो भेद मिलते हैं। प्रथम भेद में 13-13 यानी कुल 26 मात्रिक उल्लाला छंद के दो पद आते हैं और दूसरे भेद में 15-13 यानी कुल 28 मात्रिक उल्लाला छंद के दो पद आते हैं।

Conclusion

दोस्तों हम आशा करते हैं कि आपको आज के पोस्ट में दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी और आप Chhappay Chhand Ki Paribhasha, छप्पय छंद की परिभाषा उदाहरण सहित समझ गए होंगे, यदि आपको ये लेख हेल्पफुल लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरुर करें धन्यवाद

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